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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2776
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- प्रदेशों के प्रकार का विस्तृत वर्णन कीजिये।

उत्तर -

प्रदेशों के प्रकार
(Types of Regions)

(1) प्राकृतिक प्रदेश (Natural Region) - एल०डी० स्टाम्प महोदय ने प्राकृतिक प्रदेशों के विभाजन में भौतिक वातावरण का विशेष महत्व बताया और कहा कि 'सभी राजनीतिक इकाइयों की भौतिक विशेषताओं में प्रादेशिक भिन्नता मिलती है। अतः प्रदेशों में विभाजन की आवश्यकता है।' उनके अनुसार यह विभाजन उच्चावच, भौगोलिक बनावट जलवायु एवं वनस्पति के आधारों को लेकर किया जाता है।

इस प्रकार के प्रदेश का सीधा सम्बन्ध क्षेत्रीय इकाई के प्राकृतिक परिवेश से होता है। ए०जे० हरबर्टसन ने उन्नीसवीं सदी के अन्तिम एवं बीसवीं सदी के प्रथम दो दशकों में प्राकृतिक प्रदेशों की संकल्पना प्रस्तुत की। उन्होंने विश्व को प्राकृतिक प्रदेशों में बाँटते समय (1905) प्राकृतिक परिवेश के लक्षणों- (तत्त्वों)-स्थिति घरातल, जलवायु, वनस्पति, पशु सम्पदा आदि की साम्यता पर आधारित प्रदेशों को समूहीकृत करते हुए उन्हें प्रारम्भ में वृहद् प्राकृतिक प्रदेश (major natural regions) तथा बाद में प्राकृतिक प्रदेश के नाम से सम्बोधित किया। उसके अनुसार 'एक प्राकृतिक प्रदेश पृथ्वीतल का एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ प्राकृतिक वातावरण के तत्त्व मानवीय क्रियाओं को प्रभावित करते हैं', प्राकृतिक प्रदेश कहलाता है।

पृथ्वी तल के वे विभिन्न भाग जिनमें प्राकृतिक दशा, जलवायु, वनस्पति, पशु-पक्षी एक समान हों तथा मानव जीवन भी मिलता-जुलता हो, एक प्राकृतिक प्रदेश कहलाता है। भौतिक प्रदेश में जलवायु प्रदेश, मिट्टी प्रदेश तथा वानस्पतिक प्रदेश आदि इसके उपभेद हैं।

हरबर्टसन के पश्चात् 1908 में फ्रांसीसी विद्वान गैलोइस (Gallois) ने प्राकृतिक प्रदेशों पर महत्वपूर्ण कार्य किया।

(2) भौगोलिक प्रदेश (Geographic Region) - भौगोलिक प्रदेश में यह अनिवार्य नहीं कि प्रारम्भ में प्राकृतिक परिवेश के तत्त्व-स्थिति, भौतिक लक्षण, जलवायु, वनस्पति, मिट्टी, खनिज आदि को आधार के रूप में लिया जाये क्योंकि भौगोलिक प्रदेश के सीमा क्षेत्र में तत्त्वों का स्वरूप महत्ता के अनुसार जिस प्रकार से घटित होगा, महत्ता का क्रम भी उसी प्रकार निर्धारित होना चाहिये।

(3) कम्पेज (Compage) - ह्रीटलसी (Whittlesey) ने 'कम्पेज' शब्द का प्रयोग उस प्रदेश के लिये किया है जिसमें किसी पूर्व निश्चित प्रकरणों (topics) क्षेत्रीय इकाई का अधिक तथ्यात्मक एवं गहन अध्ययन किया जाये। किसी भी इकाई क्षेत्र को कम्पेज व्यवस्था के अनुसार समझने के लिये सर्वप्रथम वहाँ के लक्षणीय प्राथमिक एवं द्वितीयक तत्वों अथवा प्रकरणों का विस्तृत ज्ञान प्राप्त कर उसे व्यवस्थित रूप में संकलित किया जाना आवश्यक होता है। कम्पेज के अन्तर्गत सकलता की परम्परा से हटकर कुछ विशेष वांछित प्रकरणों, जिन पर कि शोध अथवा गवेषणा होनी है, पर बल देने की बात कही गई है। भूतल के विशेष भू-भाग में कम्पेज की स्थिति एवं उसके अध्ययन हेतु निर्धारित लक्ष्य एवं विषय सामग्री को निश्चित करने के पश्चात् ही उसके विशेष अथवा लक्षित तत्त्वों के विविध स्तरीय एवं अर्न्तसम्बन्धों के अध्ययन हेतु निर्धारित प्रकरणों का पदानुक्रम निश्चित किया जाना चाहिये। रोजर मिंसुल ने ऐसे प्रकरणों की विस्तृत सूची देते समय स्पष्टतः चेतावनी दी है कि "यह सूची ऐसी बन्दूक के समान है जो कि धारक के जीवन-यापन का माध्यम भी है तथा उसके लिये घातक भी है"। ऐसी सूची के अन्तर्गत उसने संरचना, धरातल, प्रवाह, जलवायु, मिट्टियाँ, वनस्पति, जीव-जन्तु, खनिजों को प्रथम वर्ग में, शिकार, पशुओं को पकड़ना, वन वस्तुओं का एकत्रीकरण, मछली पकड़ना, लकड़ी काटना, जड़ी-बूटी एकत्रित करना जैसे प्राथमिक व्यवसायों का वर्णन अगले वर्ग में सम्मिलित किया। इनका विकास मुख्यतः संसाधनों की उपलब्धता पर एवं इकाई क्षेत्र के विकास के स्तर के अनुरूप ही हो पाता है।

(4) संग्रथित प्रदेश - ये छोटे तथा गठित प्रकृति वाले प्रदेश होते हैं। 'केन्द्रीय व्यापार गत' तथा मार्ग संगमस्थलों को संग्रथित प्रदेश कहना उचित है। इनका प्रभाव प्रदेश के मानव समुदाय पर बहुरूपी एवं दूरगामी रहता है। संग्रथित प्रदेशों का उद्देश्य उस क्षेत्र के निवासियों के लिये वांछित सुविधायें प्रदान करना एवं आवश्यकतायें पूरी करना रहा है। अतः इसका प्रभाव केन्द्र से दूरी बढ़ने के साथ कम होता जाता है।

(5) समरूपी प्रदेश - इस प्रकार के प्रदेश में ऐसे तत्त्वों को विशेष महत्व दिया जाता है जो कि बार-बार स्वरूपित होते हैं अथवा न्यूनतम आधार पर घटित होने के क्रम में समरूपता लिये रहते हैं। उदाहरणार्थ मानसूनी प्रदेश में वर्षा, तापमान आदि के वितरण की समरूपता मिलती है। मानसूनी जलवायु वाले देशों में जनसंख्या के घनत्व एवं तकनीकी विकास स्तर में भी समरूपता है।

(6) सामान्य एवं विशिष्ट प्रदेश - भूतल पर लक्षित सभी प्रकार के तत्त्वों के सरल वितरण पर आधारित प्रदेशों का विभाजन सामान्य प्रदेशों (generic regions) के अन्तर्गत आता है। ऐसे प्रदेशों के विभाजन हेतु जो आधार निश्चित किया जाता है, उसी आधार विशेष से उसकी पहचान रहती है। डेयरी प्रदेश, लावा प्रदेश, सूती वस्त्र उद्योग की पेटी, फसल या व्यवसाय विशेष के प्रदेश सामान्य प्रदेश हैं। ये प्रदेश किसी क्षेत्र विशेष के लिये ही उपयोगी हो सकते हैं।

सामान्य प्रदेश ऐसे कुछ तत्त्वों या उनकी समरूपता के वितरण पर निर्भर नहीं है जो कि उस क्षेत्र में या विस्तृत भू-खण्ड के किसी इकाई क्षेत्र में पाई जाती है।

प्रकरणों पर आधारित प्रदेशों को विशिष्ट प्रदेश कहते हैं। ऐसे प्रदेश किसी इकाई क्षेत्र के विशिष्ट लक्षणों को दर्शाने वाले होते हैं। ऐसे प्रदेशों के अध्ययन द्वारा नवतकनीक से विकसित भू-तल विशेष को समझने एवं उनके विश्लेषण का अवसर प्राप्त होता है जिससे कि निरन्तर गतिशील घटनाक्रम एवं उनके प्रभावों का अन्य सम्भावित क्षेत्र के विकास में लाभ उठाया जा सके।

(7) नगर-प्रदेश - किसी बड़े नगर के चारों ओर का जितना क्षेत्र कर्मोपलक्षी सम्बन्धों द्वारा उस महानगर से जुड़ा होता है, और उस नगर के द्वारा प्रभावित होता है, नगर प्रदेश (city region) कहलाता है। कलकत्ता प्रदेश, बम्बई प्रदेश या टोकियो प्रदेश इसके उदाहरण हैं।

(8) रूपात्मक प्रदेश - सामान्य स्वरूप एवं विशिष्ट अर्न्तसम्बधिंत क्रियाकलापों के आधार पर प्रदेशों को दो वर्गों में रखा जा सकता है-

(a) रूपात्मक, 
(b) कर्मोपलक्षी

रूपात्मक प्रदेश किसी भूखण्ड में विशेष रूप से समस्वरूपित लक्षणों के घटित होने या पाये जाने पर आधारित होते हैं। ऐसे प्रदेशों में संरचना की दृष्टि से सामान्यतः कुछ ही तस्व प्रामाणिक स्तर तक निकट से सम्बन्धित या समरूपी दिखाई दे सकते हैं। ये तत्व की प्रधानता के आधार पर भी स्वरूपित किये जा सकते हैं। गंगा-यमुना दोआब, तराई प्रदेश, बुन्देलखण्ड उच्च भूमि, छोटा नागपुर जैसे प्रदेशों को रूपात्मक प्रदेशों की संज्ञा दी जा सकती है।

एक कर्मोपलक्षी प्रदेश मुख्यतः सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से सम्बन्धित रहता है। यह रूपात्मक प्रदेश के विपरीत होते हैं। कर्मोपलक्षी प्रदेश में कार्य संगठन की एकता होती है तथा इसके भागों में पारस्परिक निर्भरता रहती है। ऐसे प्रदेश के विभिन्न भागों में, उनको परस्पर जोड़ने की शक्ति 'गति' (movement) या परिवहन (transport) की होती है। दामोदर घाटी प्रदेश एक कर्मोपलक्षी प्रदेश है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- प्रादेशिक भूगोल में प्रदेश (Region) की संकल्पना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- प्रदेशों के प्रकार का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  3. प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश को परिभाषित कीजिए।
  4. प्रश्न- प्रदेश को परिभाषित कीजिए एवं उसके दो प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश से क्या आशय है?
  6. प्रश्न- सामान्य एवं विशिष्ट प्रदेश से क्या आशय है?
  7. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण को समझाते हुए इसके मुख्य आधारों का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के जलवायु सम्बन्धी आधार कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के कृषि जलवायु आधार कौन से हैं? इन आधारों पर क्षेत्रीयकरण की किसी एक योजना का भारत के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित मेकफारलेन एवं डडले स्टाम्प के दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
  11. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के भू-राजनीति आधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  12. प्रश्न- डॉ० काजी सैयदउद्दीन अहमद का क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण क्या था?
  13. प्रश्न- प्रो० स्पेट के क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  14. प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित पूर्व दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य भी बताइए।
  16. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन की आवश्यकता क्यों है? तर्क सहित समझाइए।
  17. प्रश्न- प्राचीन भारत में नियोजन पद्धतियों पर लेख लिखिए।
  18. प्रश्न- नियोजन तथा आर्थिक नियोजन से आपका क्या आशय है?
  19. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन में भूगोल की भूमिका पर एक निबन्ध लिखो।
  20. प्रश्न- हिमालय पर्वतीय प्रदेश को कितने मेसो प्रदेशों में बांटा जा सकता है? वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- भारतीय प्रायद्वीपीय उच्च भूमि प्रदेश का मेसो विभाजन प्रस्तुत कीजिए।
  22. प्रश्न- भारतीय तट व द्वीपसमूह को किस प्रकार मेसो प्रदेशों में विभक्त किया जा सकता है? वर्णन कीजिए।
  23. प्रश्न- "हिमालय की नदियाँ और हिमनद" पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- दक्षिणी भारत की नदियों का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- पूर्वी हिमालय प्रदेश का संसाधन प्रदेश के रूप में वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- भारत में गंगा के मध्यवर्ती मैदान भौगोलिक प्रदेश पर विस्तृत टिप्पणी कीजिए।
  27. प्रश्न- भारत के उत्तरी विशाल मैदानों की उत्पत्ति, महत्व एवं स्थलाकृति पर विस्तृत लेख लिखिए।
  28. प्रश्न- मध्य गंगा के मैदान के भौगोलिक प्रदेश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  29. प्रश्न- छोटा नागपुर का पठार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- प्रादेशिक दृष्टिकोण के संदर्भ में थार के मरुस्थल की उत्पत्ति, महत्व एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- क्षेत्रीय दृष्टिकोण के महत्व से लद्दाख पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  32. प्रश्न- राजस्थान के मैदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  33. प्रश्न- विकास की अवधारणा को समझाइये |
  34. प्रश्न- विकास के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- सतत् विकास का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- सतत् विकास के स्वरूप को समझाइये |
  37. प्रश्न- सतत् विकास के क्षेत्र कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  38. प्रश्न- सतत् विकास के महत्वपूर्ण सिद्धान्त एवं विशेषताओं पर विस्तृत लेख लिखिए।
  39. प्रश्न- अल्प विकास की प्रकृति के विभिन्न दृष्टिकोण समझाइए।
  40. प्रश्न- अल्प विकास और अल्पविकसित से आपका क्या आशय है? गुण्डरफ्रैंक ने अल्पविकास के क्या कारण बनाए है?
  41. प्रश्न- विकास के विभिन्न दृष्टिकोणों पर संक्षेप में टिप्पणी कीजिए।
  42. प्रश्न- सतत् विकास से आप क्या समझते हैं?
  43. प्रश्न- सतत् विकास के लक्ष्य कौन-कौन से हैं?
  44. प्रश्न- आधुनिकीकरण सिद्धान्त की आलोचना पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  45. प्रश्न- अविकसितता का विकास से क्या तात्पर्य है?
  46. प्रश्न- विकास के आधुनिकीकरण के विभिन्न दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
  47. प्रश्न- डॉ० गुन्नार मिर्डल के अल्प विकास मॉडल पर विस्तृत लेख लिखिए।
  48. प्रश्न- अल्प विकास मॉडल विकास ध्रुव सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा प्रादेशिक नियोजन में इसकी सार्थकता को समझाइये।
  49. प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के प्रतिक्षिप्त प्रभाव सिद्धांत की व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- विकास विरोधी परिप्रेक्ष्य क्या है?
  51. प्रश्न- पेरौक्स के ध्रुव सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  52. प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  53. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता की अवधारणा को समझाइये
  54. प्रश्न- विकास के संकेतकों पर टिप्पणी लिखिए।
  55. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय असंतुलन की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता निवारण के उपाय क्या हो सकते हैं?
  57. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमताओं के कारण बताइये। .
  58. प्रश्न- संतुलित क्षेत्रीय विकास के लिए कुछ सुझाव दीजिये।
  59. प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन का मापन किस प्रकार किया जा सकता है?
  60. प्रश्न- क्षेत्रीय असमानता के सामाजिक संकेतक कौन से हैं?
  61. प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन के क्या परिणाम हो सकते हैं?
  62. प्रश्न- आर्थिक अभिवृद्धि कार्यक्रमों में सतत विकास कैसे शामिल किया जा सकता है?
  63. प्रश्न- सतत जीविका से आप क्या समझते हैं? एक राष्ट्र इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकता है? विस्तारपूर्वक समझाइये |
  64. प्रश्न- एक देश की प्रकृति के साथ सामंजस्य से जीने की चाह के मार्ग में कौन-सी समस्याएँ आती हैं?
  65. प्रश्न- सतत विकास के सामाजिक घटकों पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  66. प्रश्न- सतत विकास के आर्थिक घटकों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  67. प्रश्न- सतत् विकास के लिए यथास्थिति दृष्टिकोण के बारे में समझाइये |
  68. प्रश्न- सतत विकास के लिए एकीकृत दृष्टिकोण के बारे में लिखिए।
  69. प्रश्न- विकास और पर्यावरण के बीच क्या संबंध है?
  70. प्रश्न- सतत विकास के लिए सामुदायिक क्षमता निर्माण दृष्टिकोण के आयामों को समझाइये |
  71. प्रश्न- सतत आजीविका के लिए मानव विकास दृष्टिकोण पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  72. प्रश्न- सतत विकास के लिए हरित लेखा दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिए।
  73. प्रश्न- विकास का अर्थ स्पष्ट रूप से समझाइये |
  74. प्रश्न- स्थानीय नियोजन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  75. प्रश्न- भारत में नियोजन के विभिन्न स्तर कौन से है? वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- नियोजन के आधार एवं आयाम कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- भारत में विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में क्षेत्रीय उद्देश्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  78. प्रश्न- आर्थिक विकास में नियोजन क्यों आवश्यक है?
  79. प्रश्न- भारत में नियोजन अनुभव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय नियोजन की विफलताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- नियोजन की चुनौतियां और आवश्यकताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  82. प्रश्न- बहुस्तरीय नियोजन क्या है? वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था के ग्रामीण जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव की विवेचना कीजिए।
  84. प्रश्न- ग्रामीण पुनर्निर्माण में ग्राम पंचायतों के योगदान की विवेचना कीजिये।
  85. प्रश्न- संविधान के 72वें संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में जो परिवर्तन किये गये हैं उनका उल्लेख कीजिये।
  86. प्रश्न- पंचायती राज की समस्याओं का विवेचन कीजिये। पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव भी दीजिये।
  87. प्रश्न- न्यूनतम आवश्यक उपागम की व्याख्या कीजिये।
  88. प्रश्न- साझा न्यूनतम कार्यक्रम की विस्तारपूर्वक रूपरेखा प्रस्तुत कीजिये।
  89. प्रश्न- भारत में अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु क्या उपाय किये गये हैं?
  90. प्रश्न- भारत में तीव्र नगरीयकरण के प्रतिरूप और समस्याओं की विवेचना कीजिए।
  91. प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था की समस्याओं की विवेचना कीजिये।
  92. प्रश्न- प्राचीन व आधुनिक पंचायतों में क्या समानता और अन्तर है?
  93. प्रश्न- पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव दीजिये।
  94. प्रश्न- भारत में प्रादेशिक नियोजन के लिए न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के महत्व का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के सम्मिलित कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- भारत के नगरीय क्षेत्रों के प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं?

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